Thursday, March 24, 2011

अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है…by akhilesh dubey

अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी हैये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है
लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द मेंयहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है
मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिनहमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है
हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त हैहमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है
जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगेकिराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है
सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी मेंकिसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है

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