Sunday, December 23, 2018
Wednesday, November 7, 2018
बिच्छी झारने का मंत्र
ॐ बिच्छी बिच्छी तरनी जात छोटी बड़ी अठारह जात छः काली छः पीली छः रोवानी बलिहार हार पोर पोर बिच्छी उतरै अँगुरी के पोर नीलकंठ मोही शिव शंकर सत्य सहित बिच्छी झरि परै दोहाई लोना चमईनी की।
जहर जब तक उतर न जाये तब तक झारते रहो
और दीवाली और सूर्य एवं चंद्र ग्रहण पर जगा ले 7, 11, 108 या 1008 बार पैड कर।
नजर झारने का मंत्र
ॐ कला काली महाकाली मसान काली माया का पिंड नौ दिया नौ बाती टोनही का टोना मारती आपन गुण गावती आदि वाचा छोड़ परमेश्वरी इन्द्र के ताड़े ताँबे की टोकरी रोग दोस भूत को झारो जय कामरु कामाख्या भगवती की दुहाई।
इतना पढ़ने के बाद विभूति मार दो।
7 बार या 11 बार फूंक मारने है।
और दीवाली और सूर्य एवं चंद्र ग्रहण पर जगा ले 7, 11, 108 या 1008 बार पैड कर।
Thursday, September 20, 2018
भाग्यम फलत सर्वदा
भाग्यम फलत सर्वदा न च विद्या न च पौरशः
भाग्य हमेशा फल देता है अगर आपके पास विद्या और पौरुष नही है तो भी।
Sunday, April 1, 2018
कविता जाने क्यूं
*एक अच्छी कविता प्राप्त हुई है, जो मनन योग्य है।*
_"जाने क्यूं_
_अब शर्म से,_
_चेहरे गुलाब नही होते।_
_जाने क्यूं_
_अब मस्त मौला मिजाज नही होते।_
_पहले बता दिया करते थे, दिल की बातें।_
_जाने क्यूं_
_अब चेहरे_,
_खुली किताब नही होते।_
_सुना है_
_बिन कहे_
_दिल की बात_
_समझ लेते थे।_
_गले लगते ही_
_दोस्त हालात_
_समझ लेते थे।_
_तब ना फेस बुक_
_ना स्मार्ट मोबाइल था_
_ना फेसबुक_
_ना ट्विटर अकाउंट था_
_एक चिट्टी से ही_
_दिलों के जज्बात_
_समझ लेते थे।_
_सोचता हूं_
_हम कहां से कहां आ गये,_
_प्रेक्टीकली सोचते सोचते_
_भावनाओं को खा गये।_
_अब भाई भाई से_
_समस्या का समाधान_
_कहां पूछता है_
_अब बेटा बाप से_
_उलझनों का निदान_
_कहां पूछता है_
_बेटी नही पूछती_
_मां से गृहस्थी के सलीके_
_अब कौन गुरु के_
_चरणों में बैठकर_
_ज्ञान की परिभाषा सीखे।_
_परियों की बातें_
_अब किसे भाती है_
_अपनो की याद_
_अब किसे रुलाती है_
_अब कौन_
_गरीब को सखा बताता है_
_अब कहां_
_कृष्ण सुदामा को गले लगाता है_
_जिन्दगी मे_
_हम प्रेक्टिकल हो गये है_
_मशीन बन गये है सब_
_इंसान जाने कहां खो गये है!
*इंसान जाने कहां खो गये* 🙏🏼🙏🏼
_"जाने क्यूं_
_अब शर्म से,_
_चेहरे गुलाब नही होते।_
_जाने क्यूं_
_अब मस्त मौला मिजाज नही होते।_
_पहले बता दिया करते थे, दिल की बातें।_
_जाने क्यूं_
_अब चेहरे_,
_खुली किताब नही होते।_
_सुना है_
_बिन कहे_
_दिल की बात_
_समझ लेते थे।_
_गले लगते ही_
_दोस्त हालात_
_समझ लेते थे।_
_तब ना फेस बुक_
_ना स्मार्ट मोबाइल था_
_ना फेसबुक_
_ना ट्विटर अकाउंट था_
_एक चिट्टी से ही_
_दिलों के जज्बात_
_समझ लेते थे।_
_सोचता हूं_
_हम कहां से कहां आ गये,_
_प्रेक्टीकली सोचते सोचते_
_भावनाओं को खा गये।_
_अब भाई भाई से_
_समस्या का समाधान_
_कहां पूछता है_
_अब बेटा बाप से_
_उलझनों का निदान_
_कहां पूछता है_
_बेटी नही पूछती_
_मां से गृहस्थी के सलीके_
_अब कौन गुरु के_
_चरणों में बैठकर_
_ज्ञान की परिभाषा सीखे।_
_परियों की बातें_
_अब किसे भाती है_
_अपनो की याद_
_अब किसे रुलाती है_
_अब कौन_
_गरीब को सखा बताता है_
_अब कहां_
_कृष्ण सुदामा को गले लगाता है_
_जिन्दगी मे_
_हम प्रेक्टिकल हो गये है_
_मशीन बन गये है सब_
_इंसान जाने कहां खो गये है!
*इंसान जाने कहां खो गये* 🙏🏼🙏🏼
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