Tuesday, December 15, 2020

भैस चालीसा

महामूर्ख दरबार में,
लगा अनोखा केस
फँसा हुआ है मामला, ...
अक्ल बङी या भैंस,
अक्ल बङी या भैंस,
दलीलें बहुत सी आयीं
महामूर्ख दरबार की
अब,देखो सुनवाई...

मंगल भवन अमंगल हारी-
भैंस सदा ही अकल पे भारी
भैंस मेरी जब चर आये चारा
पाँच सेर हम दूध निकारा
कोई अकल ना यह कर पावे
चारा खा कर दूध बनावे
अक्ल घास जब चरने जाये
हार जाय नर अति दुख पाये
भैंस का चारा
लालू खायो
निज घरवारि
सी.एम. बनवायो
तुमहू भैंस का चारा खाओ
बीवी को सी.एम. बनवाओ
मोटी अकल मन्दमति होई
मोटी भैंस दूध अति होई
अकल इश्क़ कर कर के रोये
भैंस का कोई बाँयफ्रेन्ड ना होये
अकल तो ले मोबाइल घूमे
एस.एम.एस. पा पा के झूमे
भैंस मेरी डायरेक्ट पुकारे
कबहूँ मिस्ड काल ना मारे
भैंस कभी सिगरेट ना पीती
भैंस बिना दारू के जीती
भैंस कभी ना पान चबाये
ना ही इसको ड्रग्स सुहाये
शक्तिशालिनी शाकाहारी
भैंस हमारी कितनी प्यारी
अकलमन्द को कोई ना जाने
भैंस को सारा जग पहचाने
जाकी अकल मे गोबर होये
सो इन्सान पटक सर रोये
मंगल भवन अमंगल हारी

भैंस का गोबर अकल पे भारी
भैंस मरे तो बनते जूते
अकल मरे तो पङते जूते॥

Thursday, November 26, 2020

संत ने छोड़ें संतई चाहे जितने मिलें असंत ,चमचे न छोड़ें चमचई चाहे जूते मिलें अनंत

संत ने छोड़ें संतई चाहे जितने मिलें असंत ,चमचे न छोड़ें चमचई चाहे जूते मिलें अनंत

Sunday, October 4, 2020

Happy birthday श्लोक

सुदिनं सुदिनं तव जन्मदिनम् |  भवतु मंगलं तव जन्म दिनम् ll
चिरंजीव कुरु कीर्ति वर्धनम् l  चिरंजिव कुरु यशोवर्धनम् ll
विजयीभव सर्वत्र सर्वदा l  जगति भवतु तव यशोगानम् ll
“जीवेत शरद: शतं दीर्धायुरारोग्यामस्तु

Monday, September 7, 2020

चांदनी रात में बरसात हुई लगती है

चांदनी रात में बरसात हुई लगती है
जब दर्द हो सीने में हर बात बुरी लगती है

Thursday, September 3, 2020

दुश्मनो को हराने के लिए मंत्र

ॐ ह्रीं बगलामुखी देव्यै सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जिव्हाम कीलय - कीलय बुद्धिम विनाशाय  ह्री ॐ नमः

Friday, August 21, 2020

नरक की आत्माओं के लक्षण

कटुता च वाणी
       दरिद्रता च स्वजनेषु वैरम्।
नीच प्रसङ्गः कुलहीनसेवा 
       चिह्नानि देहे नरकस्थितानाम्।

भावार्थ :- अत्यन्त क्रोध, कटु वाणी, दरिद्रता, स्वजनों से वैर, नीच लोगों का साथ, कुलहीन की सेवा...  नरक की आत्माओं के यही लक्षण होते हैं।।

Friday, August 7, 2020

पण्डित किसे कहते है

सदृशं वाक्यं 
      प्रभाव सदृशं प्रियम्,
आत्म शक्ति समं कोपं 
      यो जानाति स पण्डितः॥

भावार्थ :- किसी सभा में कब और क्या बोलना चाहिए, किससे प्रेम करना चाहिए तथा कहां पर कितना क्रोध करना चाहिए, जो इन सब बातों को जानता है, उसे पण्डित अर्थात ज्ञानी व्यक्ति कहा जाता है।।

Thursday, July 30, 2020

मूर्ख को त्यागना

परिहर्तव्यः 
       प्रत्यक्षो द्विपदः पशुः।
भिनत्ति वाक्य शूलेन 
       अदृश्ययं कण्टकं यथा।।

भावार्थ :- मूर्ख व्यक्ति को दो पैरों वाला पशु समझकर त्याग देना ही उचित है, क्योंकि वह अपने मूर्खतापूर्ण शब्दों से शूल के समान उसी तरह भेदता रहता है, जैसे अदृश्य कांटा चुभकर पीड़ा देता है।

Wednesday, April 15, 2020

दोहे अमीर खुसरो

दोहे अमीर खुसरो

दोहे

अपनी छवि बनाई के मैं तो पी के पास गई।
जब छवि देखी पीहू की सो अपनी भूल गई।।

अंगना तो परबत भयो, देहरी भई विदेस।
जा बाबुल घर आपने, मैं चली पिया के देस।।

आ साजन मोरे नयनन में, सो पलक ढाप तोहे दूँ।
न मैं देखूँ और न को, न तोहे देखन दूँ।।

उज्जवल बरन अधीन तन एक चित्त दो ध्यान।
देखत में तो साधु है पर निपट पाप की खान।।

खुसरवा दर इश्क बाजी कम जि हिन्दू जन माबाश।
कज़ बराए मुर्दा मा सोज़द जान-ए-खेस रा।।

खुसरो ऐसी पीत कर जैसे हिन्दू जोय।
पूत पराए कारने जल जल कोयला होय।।

खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वा की धार।
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार।।

खुसरो पाती प्रेम की बिरला बाँचे कोय।
वेद, कुरान, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय।।

खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूँ पी के संग।
जीत गयी तो पिया मोरे हारी पी के संग।।

खुसरो मौला के रुठते, पीर के सरने जाय।
कहे खुसरो पीर के रुठते, मौला नहिं होत सहाय।।

खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग।
तन मेरो मन पियो को, दोउ भए एक रंग।।

खुसरो सरीर सराय है क्यों सोवे सुख चैन।
कूच नगारा सांस का, बाजत है दिन रैन।।

गोरी सोवे सेज पर, मुख पर डारे केस।
चल खुसरो घर आपने, सांझ भयी चहु देस।।

चकवा चकवी दो जने इन मत मारो कोय।
ये मारे करतार के रैन बिछोया होय।।

ताज़ी खूटा देस में कसबे पड़ी पुकार।
दरवाजे देते रह गए निकल गए उस पार।।

देख मैं अपने हाल को रोऊं, ज़ार-ओ-ज़ार।
वै गुनवन्ता बहुत है, हम हैं औगुन हार।।

नदी किनारे मैं खड़ी सो पानी झिलमिल होय।
पी गोरी मैं साँवरी अब किस विध मिलना होय।।

पहले तिय के हीय में, डगमत प्रेम उमंग।
आगे बाती बरति है, पीछे जरत पतंग।।

पंखा होकर मैं डुली, साती तेरा चाव।
मुझ जलती का जनम गयो तेरे लेखन भाव।।

बाबुल भेजी मुझ देन कौ तादाँ कौ फूल।
हो छावंजा दहाजिया नाला हो मोल।।

भाई रे मल्‍लाहो हम को पार उतार।
हाथ को देऊंगी मुंदरी गले को देऊं हार।।

रैन बिना जग दुखी और दुखी चन्द्र बिन रैन।
तुम बिन साजन मैं दुखी और दुखी दरस बिन नैंन।।

रैनी चढ़ी रसूल की सो रंग मौला के हाथ।
जिसके कपरे रंग दिए सो धन धन वाके भाग।।

वो गए बालम वो गए नदिया पार।
आपे पार उतर गए, हम तो रहे मझधार।।

श्याम सेत गोरी लिए जनमत भई अनीत।
एक पल में फिर जात है जोगी काके मीत।।

संतों की निंदा करे, रखे पर नारी से हेत।
वे नर ऐसे जाऐंगे, जैसे रणरेही का खेत।।

साजन ये मत जानियो तोहे बिछड़त मोहे को चैन।
दिया जलत है रात में और जिया जलत बिन रैन।।

सेज सूनी देख के रोऊं दिन-रैन।
पिया पिया कहती मैं पल भर सुख न चैन।।

सौ नारें सौ सुख सेवैं कंता को गुल लार।
मैं दुखियारी जनम की दुखी गई बहार।।