Monday, July 4, 2011

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो

पायो जी मैंने, राम रतन धन पायो ॥
वस्तु अमोलिक, दी मेरे सतगुरु, किरपा करि अपनायो ।
जनम जनम की पूंजी पाई, जग में सभी खोवायो ।
खरचै न खूटै, जाको चोर न लूटै, दिन दिन बढ़त सवायो ।
सत की नाव, खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो ।
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर, हरष हरष जस गायो ।

मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में

मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

जो सुख पाऊँ राम भजन में
सो सुख नाहिं अमीरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

भला बुरा सब का सुन लीजै
कर गुजरान गरीबी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

आखिर यह तन छार मिलेगा
कहाँ फिरत मग़रूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

प्रेम नगर में रहनी हमारी
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

कहत कबीर सुनो भयी साधो
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

भजन - कीर्तन - आरति

http://bhajans.ramparivar.com/2008/09/blog-post_9308.html



सत्यनारायण कथा

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