परिहर्तव्यः
प्रत्यक्षो द्विपदः पशुः।
भिनत्ति वाक्य शूलेन
अदृश्ययं कण्टकं यथा।।
भावार्थ :- मूर्ख व्यक्ति को दो पैरों वाला पशु समझकर त्याग देना ही उचित है, क्योंकि वह अपने मूर्खतापूर्ण शब्दों से शूल के समान उसी तरह भेदता रहता है, जैसे अदृश्य कांटा चुभकर पीड़ा देता है।