Sunday, June 6, 2021

जैसी संगति वैसी रंगती

 सत्रिविशते यादृशांश्चोपसेवते। 
यादृगिच्छेच्च भवितुं तादृग् भवति पूरुषः ॥

*भावार्थ : व्यक्ति जैसे लोगों के साथ उठता -बैठता है, जैसे लोगों की संगति करता है, उसी के अनुरूप स्वयं को ढाल लेता है।*