Thursday, March 24, 2011

भैंस चालीसा (Bhains Chalisa)

महामूर्ख दरबार में, लगा अनोखा केस

फसा हुआ है मामला, अक्ल बङी या भैंस

अक्ल बङी या भैंस, दलीलें बहुत सी आयीं

महामूर्ख दरबार की अब,देखो सुनवाई

मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस सदा ही अकल पे भारी

भैंस मेरी जब चर आये चारा- पाँच सेर हम दूध निकारा

कोई अकल ना यह कर पावे- चारा खा कर दूध बनावे

अक्ल घास जब चरने जाये- हार जाय नर अति दुख पाये

भैंस का चारा लालू खायो- निज घरवारि सी.एम. बनवायो

तुमहू भैंस का चारा खाओ- बीवी को सी.एम. बनवाओ

मोटी अकल मन्दमति होई- मोटी भैंस दूध अति होई

अकल इश्क़ कर कर के रोये- भैंस का कोई बाँयफ्रेन्ड ना होये

अकल तो ले मोबाइल घूमे- एस.एम.एस. पा पा के झूमे

भैंस मेरी डायरेक्ट पुकारे- कबहूँ मिस्ड काल ना मारे

भैंस कभी सिगरेट ना पीती- भैंस बिना दारू के जीती

भैंस कभी ना पान चबाये - ना ही इसको ड्रग्स सुहाये

शक्तिशालिनी शाकाहारी- भैंस हमारी कितनी प्यारी

अकलमन्द को कोई ना जाने- भैंस को सारा जग पहचाने

जाकी अकल मे गोबर होये- सो इन्सान पटक सर रोये

मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस का गोबर अकल पे भारी

भैंस मरे तो बनते जूते- अकल मरे तो पङते जूते

गुलशन की फक़त फूलों से नहीं काटों से भी ज़ीनत होती है

गुलशन की फक़त फूलों से नहीं काटों से भी ज़ीनत होती है,जीने के लिए इस दुनिया में गम की भी ज़रूरत होती है.
ऐ वाइज़-ए-नादां करता है तू एक क़यामत का चर्चा,यहाँ रोज़ निगाहें मिलती हैं यहाँ रोज़ क़यामत होती है.
वो पुर्शिश-ए-गम को आए हैं कुछ कह ना सकूँ चुप रह ना सकूँ,खामोश रहूं तो मुश्किल है कह दूं तो शिकायत होती है.
करना ही पड़ेगा ज़ब्त-ए-अलम पीने ही पड़ेंगे ये आँसू,फरियाद-ओ-फूग़ान से ऐ नादां तौहीन-ए-मोहब्बत होती है.
जो आके रुके दामन पे ‘सबा’ वो अश्क़ नहीं है पानी है,जो अश्क़ ना छल्के आँखों से उस अश्क़ की कीमत होती है.

खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में

खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने मेंएक पुराना खत खोला अनजाने में
जाना किसका ज़िक्र है इस अफ़साने मेंदर्द मज़े लेता है जो दुहराने में
शाम के साये बालिस्तों से नापे हैंचाँद ने कितनी देर लगा दी आने में
रात गुज़रते शायद थोड़ा वक्त लगेज़रा सी धूप दे उन्हें मेरे पैमाने में
दिल पर दस्तक देने ये कौन आया हैकिसकी आहट सुनता है वीराने मे ।

Zindagi yun hui basar tanha

ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हाक़ाफिला साथ और सफर तन्हा
अपने साये से चौंक जाते हैंउम्र गुज़री है इस कदर तन्हा
रात भर बोलते हैं सन्नाटेरात काटे कोई किधर तन्हा
दिन गुज़रता नहीं है लोगों मेंरात होती नहीं बसर तन्हा
हमने दरवाज़े तक तो देखा थाफिर न जाने गए किधर तन्हा

अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है

अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी हैये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है
लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द मेंयहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है
मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिनहमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है
हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त हैहमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है
जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगेकिराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है
सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी मेंकिसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है

तीरगी चांद के ज़ीने से सहर तक पहुँची

तीरगी चांद के ज़ीने से सहर तक पहुँचीज़ुल्फ़ कन्धे से जो सरकी तो कमर तक पहुँची
मैंने पूछा था कि ये हाथ में पत्थर क्यों हैबात जब आगे बढी़ तो मेरे सर तक पहुँची
मैं तो सोया था मगर बारहा तुझ से मिलनेजिस्म से आँख निकल कर तेरे घर तक पहुँची
तुम तो सूरज के पुजारी हो तुम्हे क्या मालुमरात किस हाल में कट-कट के सहर तक पहुँची
एक शब ऐसी भी गुजरी है खयालों में तेरेआहटें जज़्ब किये रात सहर तक पहुँची
(Teergi chaand ke zeene se sahar tak pahunchiZulf kandhe se jo sarki to kamar tak pahunchi
Maine poocha tha ki ye haath mein paththar kyon haibaat jab aage badhi to mere sar tak pahunchi
main to soya tha magar barha tujh se milnejism se aankh nikal kar tere ghar tak pahunchi
tum to suraj ke pujari ho tumhen kya maloomraat kis haal mein kat kat ke sahar tak pahunchi
Ek shab aisi bhi guzri hai khayalon mein tereAahaten jazb kiye raat sahar tak pahunchi)

अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है…by akhilesh dubey

अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी हैये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है
लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द मेंयहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है
मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिनहमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है
हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त हैहमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है
जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगेकिराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है
सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी मेंकिसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है

Best of रहीम के दोहे…

छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥1॥
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥2॥
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥3॥
खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥4॥
जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥5॥
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥6॥
आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥7॥
खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय।रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय॥8॥
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥9॥
जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥10॥
जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥11॥
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥12॥
बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥13॥
माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥14॥
एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥15॥
रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥16॥
रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥17॥
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥18॥
रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥19॥
रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥20॥
बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥21॥
मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥22॥
दोनों रहिमन एक से, जब लौं बोलत नाहिं।जान परत हैं काक पिक, ऋतु वसंत कै माहि॥23॥
रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥24॥
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥25॥
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥26॥
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥27॥

कबीर के दोहे

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