नकटा: सरग लाल गेनवा
विलुप्त होते लोकगीतों की श्रृंखला में यह नकटा अपने में अनोखा है। यद्यपि इससे मिलते जुलते कई गीत बाद के काल खण्डों में भी रचे गये हैं किन्तु मौलिकता का कोई विकल्प नहीं।
गीत स्वतः बोधक है... पर्त दर पर्त रिश्तों के चरित्र गीत की लय में उतराते-उतरते हैं। बस रिश्तों की कड़ियाँ जोड़ते जाइए, गीत लम्बा होता रहेगा।
रचना: पारम्परिक
स्वर: मानकेशरी पाण्डेय एवं इंदू तिवारी
सरग लाल गेनवा के हमरे तोड़ै।
सरग लाल गेनवा के हमरे तोड़ै।।
ससरू जो होतें तोड़ि ताड़ि लउतें -2
सास घराँ मलकिन, के हमरे तोड़ै -2
सरग लाल गेनवा के हमरे तोड़ै।
सरग लाल गेनवा के हमरे तोड़ै।।
जेठ जी होतें तोड़ि ताड़ि लउतें -2
जेठान घराँ मलकिन, के हमरे तोड़ै -2
सरग लाल गेनवा के हमरे तोड़ै।
सरग लाल गेनवा के हमरे तोड़ै।।
देवरू ज़ो होतें तोड़ि ताड़ि लउतें -2
देवरानी घराँ मलकिन, के हमरे तोड़ै,
ननद घराँ मलकिन, के हमरे तोड़ै
सरग लाल गेनवा के हमरे तोड़ै - 2
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