आदरणीय
भगवत् भक्तों
भजन की संपूर्ण विधि गीता और रामचरितमानस में सुरक्षित है।
भजन गोपनीय वस्तु है,
नाम जप भजन की शुरुआत है।
ठाढे, बैठे, पडे उताना नाम जपै सो परम सयाना।।
~~~~~ संत वाणी
भाव कुभाव अनख आलसहूं।
नाम जपत मंगल दिसि दसहूं।
~~ रामचरित मानस
यज्ञों में सर्वश्रेष्ठ यज्ञ जप यज्ञ है।
~~भगवान श्री कृष्ण
कलयुग केवल नाम अधारा।
सुमिरि सुमिरि नर उतरहिं पारा।
~~~रामचरितमानस
अतः कोई दो ढाई अक्षर का नाम जपें।
ऊँ अथवा राम दोनों का मतलब एक है।
नाम चार श्रेणियों से जपा जाता है।
बैखरी, मध्यमा, पस्यंती और परा।
बैखरी जो ब्यक्त हो जाये।
हम जपें और बगल वाला भी सुने।
यह प्रथम अवस्था है।
माध्यमा में वोंठ हिलते है और जप चलता है।
👉पस्यंती में जबान का थोड़ा इशारा लगता है और जप जारी रहता है।
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परा वाणीं का जाप श्वांस पर होता है श्वांस आयी तो ओम गयी तो ओम नाम श्वांस में ढलने के पश्चात मंत्र का रूप ले लेता है।
और ध्यान की स्थिति आ जाती है।
ऐसे साधक में रिद्धि-सिद्धियों का आविर्भाव होने लगता है परंतु इनसे बचना है। यह हमारी मंजिल नहीं रिद्धि-सिद्धि भी साधन पथ में उतना ही बाधक है जैसे काम, क्रोध इत्यादि।
अतः अनुभवी गुरु की शरण नितांत आवश्यक है।
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