आजकल हर जगह चमचे आ गये हैं,
प्रशंसा पाने के सस्ते ढंग लोगों को भा गये हैं।
इसलिए आज से चमचे खरीदने का काम करो,
फिर चाहे जो कहो,वाहवाही पाने का नाम करो॥
आजकल चमचों का धंधा बड़े जोरों पर चल रहा है,
आजकल चमचों का धंधा बड़े जोरों पर चल रहा है,
जहां देखो, जिसे देखो वही चमचा बन रहा है।
यहां छोटे-बड़े,फोर्क,मस्का लगाने वाले चमचे बिकते हैं,
आपको क्या चाहिए , यह आप सोच सकते हैं?
चमचों से चाहे जो , जैसा भी काम करवाईए,
चमचों से चाहे जो , जैसा भी काम करवाईए,
सभाओं में चमचों से तालियां पिटवाइए ।
और क्या-क्या कहें ज़नाब नई-नई चालें फ़्री पाइए?
हर्रा लगे न फिटकरी , फिर भी रंग चोखा पाइए॥
यही तो प्रजातन्त्र का कमाल है ,
यही तो प्रजातन्त्र का कमाल है ,
जिसके पास चमचे हैं वही खुशहाल है।
काम करें चमचे और आप करें कैश,
दुनिया जाए भाड़ में ,आप घर बैठे करें ऐश ॥
कभी खुद चमचे बनते हैं,या किसी को बनाते हैं,
कभी खुद चमचे बनते हैं,या किसी को बनाते हैं,
येन-केन-प्रकारेण अपना नाम कमाते हैं।
अगर कोई मुसीबत आ भी जाए तो,
चमचों पर ड़ाल खुद बरी हो जाते हैं॥
चमचों की जरूरत क्या नेता को ही होती है ?
चमचों की जरूरत क्या नेता को ही होती है ?
या चमचों की जरूरत सृजेता को भी होती है।
संकल्प-शक्ति वाले इसके मोहताज़ नहीं होते,
दूसरों के बल पर कभी सरताज़ नहीं होते ?
प्रधान-मंत्री से मंत्री तक सब चमचे पाल रहे हैं ,
प्रधान-मंत्री से मंत्री तक सब चमचे पाल रहे हैं ,
यहां तक कि सृजेता भी इससे अछूते नहीं रहे हैं ।
सबको काम कम , नाम ज्यादा चाहिए
,इसलिए हम सबको चमचे पालने चाहिए ॥
...................................अखिलेश्वर दुबे
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