Monday, March 10, 2025

मन के जीते जीत है मन के हारे हार

मन के जीते जीत है मन के हारे हार
हार गए जो बिन लड़े उनपर है धिक्कार
उनपर है धिक्कार जो देखे न सपना
सपनों का अधिकार असलअधिकार है अपना
अपनों के खातिर करना कुछ आज हमें
अजर अमर कर देना है स्वराज हमें
तु मटी का लाल है कोई कंकड़ या धूल नहीं
तु समय बदल के रख देगा इतिहास लिखेगा भूल नहीं
तु भोर का पहिला तारा है परिवर्तन का एक नारा है
ये अंधकार कुछ पल का है फिर सब कुछ तुम्हारा है
सेवक का अख़री मुजरा स्वीकार कीजिए राजे
जा रहे हैं आपके शत्रुओं के चोट पर लगाने
हमने कहा था हम नमक है महाराज
तुम नमक नहीं चंदन हो कवि तुम तिलक हमारे माते का
कविता ही खत्म हुई राजे अंत में जीत आपकी हुई
जनमन्स के भूप रहोगे चरम चमकती धूप रहोगे
प्रसन्न रहे माता जगदंबा ओ छत्रपति
ओ साहचरी ओ संभा
हम नमक है महाराज, हम नमक है
तुम नमक नहीं चंदन हो कवि तुम तिलक हमारे माते का

Friday, January 24, 2025

चैते चना , बैशाखे बेल ;जेठे शयन , आसाढे खेल ।

चैते चना , बैशाखे बेल ;
जेठे शयन , आसाढे खेल ।

सावन हरे , भादौ तीत ;
क्वार में करो , गुङ से प्रीत ।

कार्तिक मूली , अगहन तेल ;
पूष में करो , दुध से मेल ।

माघ मास घी खिचङी खाय ;
फागुन उठकर नित्य नहाय। 

यह बारह जो सेवन करे ;
रोग दोष दुख तन कर हरे ।।

    चैत्र के महीने में चने का सेवन जरूर करना चाहिए। नया चना प्रकृति नव परिवर्तन के साथ पथ्य बन जाता है । जो फाल्गुन में अपनी नमी के चलते वात प्रधान था। वह चैत्र में औषध जैसा बन जाता है।
 
   वैशाख के महीने में बेल फल का सेवन जरूर करना चाहिए।  पूरे वैशाख मास के अंदर फलों में हमेशा बेल फल  को भोजन का हिस्सा जरूर बनायें ।

    ज्येष्ठ के महीने में जब दिन में बाहर भयंकर गर्मी पड़ती है तो दिन के समय शयन कर, जरूर आराम करना चाहिए। वैसे आयुर्वेद में दिन में सोना वर्जित होता है, लेकिन सिर्फ ज्येष्ठ के महीने में ही सोने को अनुकूल माना गया है। 
   आषाढ़ के महीने में खेल यानि विभिन्न प्रकार के खेल , योग , कसरत , एक्सरसाइज करनी चाहिए। आषाढ के महीने का मौसम अनुकूल होता है और शरीर को भी आने वाले मौसम के लिए तैयार रखना जरूरी हैं।

   सावन के महीने में छोटी हरङ का एक डंठल हर रोज एक दिन में एक बार मुंह में सुपारी की भांति रखकर के जरूर खाना चाहिए। हरङ त्रिफलों में एक महत्वपूर्ण औषधि है।

   भाद्रपद महीने में तीत यानी किरायचा जरूर खाएं। किरायचा छोटे छोटे कवक जीवाणु आदि को शरीर से बाहर निकालता हैं, जो नुकसानदायक होते हैं।

   आसोज के महीने में गुड़ जरूर खाना चाहिए । रात को सोते समय एक गुड़ की छोटी सी डली खाकर के कुल्ला करके सो जाएं। पूरा शरीर डिटॉक्स हो जाएगा।

   कार्तिक के महीने में मूली जरूर खाएं । कार्तिक मास की सुबह में अगर आपने मूली खाई तो वह औषध के समान शरीर को गुण देती है।
 
   मिक्सर महीने में तेल का सेवन जरूर करें , क्योंकि बाहर के सर्द मौसम से चमड़ी शुष्क हो जाती है। और हमारी चमड़ी को भी वसा की जरूरत होती है । मिक्सर में तेल खाना भी चाहिए और तेल से शरीर पर मसाज भी करना चाहिए। 

   पौष के महीने में दूध का सेवन जरूर करें । रात को सोते समय गाय  का दूध अच्छी तरह से गर्म करने के पश्चात सोते समय पीकर सोयें। 

    माघ के महीने में घी और खीचड़ी का भोजन जरूर करें। इस महीने में भगवान को भी खींचङे का ही भोग इसीलिए लगाते है।

   फाल्गुन के महीने में सुबह जल्दी उठकर जरूर अच्छी तरह से नहाना चाहिए , क्योंकि बाहर का मौसम इस महीने में उल्टा सीधा चलता रहता है। सुबह-सुबह सूर्योदय के साथ स्नान करके अपने शरीर के तापमान को संतुलित करना परम आवश्यक है।
   हमारे पूर्वजों के द्वारा बताई गई ये समस्त बातें उनके वर्षों का अनुभव हैं। इसलिए ये सिर्फ किंवदंतियां नहीं सांईटीफिक भी पूर्ण निरापद बातें हैं।  

   ऐसा हर पदार्थ मौसम व समय के अनुसार आप खाया जाए तो ओषध जैसा होता हैं तो असमय सेवन से विष समान बन जाता हैं।
साभार

Saturday, January 18, 2025

अक्ल बाँटने लगे विधाता,लम्बी लगी कतारी ।

अक्ल बाँटने लगे विधाता,
लम्बी लगी कतारी ।
सभी आदमी खड़े हुए थे,
कहीं नहीं थी नारी ।।

सभी नारियाँ कहाँ रह गयीं,
था ये अचरज भारी ।
पता चला ब्यूटी पार्लर में,
पहुँच गयीं थीं सारी ।।

मेकअप की थी गहन प्रक्रिया,
एक एक पर भारी ।
बैठी थीं कुछ इन्तजार में,
कब आयेगी बारी ।।

उधर विधाता ने पुरूषों में,
अक्ल बाँट दी सारी ।
पार्लर से फुर्सत पा कर के,
जब पहुँची सब नारी ।।

बोर्ड लगा था स्टॉक ख़त्म है,
नहीं अक्ल अब बाकी ।
रोने लगी सभी महिलाएँ,
नीन्द खुली ब्रह्मा की ।।

पूछा कैसा शोर हो रहा,
ब्रह्मलोक के द्वारे ?
पता चला कि स्टॉक अक्ल का
पुरुष ले गये सारे ।।

ब्रह्मा जी ने कहा देवियों,
बहुत देर कर दी है ।
जितनी भी थी अक्ल सभी वो,
पुरुषों में भर दी है ।।

लगी चीखने महिलाएँ,
ये कैसा न्याय तुम्हारा ?
कुछ भी करो, चाहिए हमको
आधा भाग हमारा ।।

पुरुषों में शारीरिक बल है,
हम ठहरी अबलाएँ ।
अक्ल हमारे लिए जरुरी,
निज रक्षा कर पाएँ ।।

बहुत सोच दाढ़ी सहला कर,
तब बोले ब्रह्मा जी ।
इक वरदान तुम्हे देता हूँ,
हो जाओ अब राजी ।।

थोड़ी सी भी हँसी तुम्हारी,
रहे पुरुष पर भारी ।
कितना भी वह अक्लमन्द हो,
अक्ल जायेगी मारी ।।

एक बोली, क्या नहीं जानते !
स्त्री कैसी होती है ?
हँसने से ज्यादा महिलाएँ,
बिना बात रोती हैं ।।

ब्रह्मा बोले यही कार्य तब,
रोना भी कर देगा ।
औरत का रोना भी नर की,
बुद्धि को हर लेगा ।।

इक बोली, हमको ना रोना,
ना हँसना आता है ।
झगड़े में हैं सिद्धहस्त हम,
झगड़ा ही भाता है ।।

ब्रह्मा बोले चलो मान ली,
यह भी बात तुम्हारी ।
घर में जब भी झगड़ा होगा,
होगी विजय तुम्हारी ।।

जग में अपनी पत्नी से जब
कोई पति लड़ेगा ।
पछतायेगा, सिर ठोकेगा
आखिर वही झुकेगा ।।

ब्रह्मा बोले सुनो ध्यान से,
अन्तिम वचन हमारा ।
तीन शस्त्र अब तुम्हें दे दिये,
पूरा न्याय हमारा ।।

इन अचूक शस्त्रों में भी,
जो मानव नहीं फँसेगा ।
बड़ा विलक्षण जगतजयी
ऐसा नर दुर्लभ होगा ।।

कहे कवि सब बड़े ध्यान से,
सुन लो बात हमारी ।
बिना अक्ल के भी होती है,
नर पर भारी नारी ।।

Saturday, November 9, 2024

भरा सत्संग का दरिया, नहालो जिसका जी चाहे ।।

 भरा सत्संग का दरिया, नहालो जिसका जी चाहे ।।


दोहा – एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनिआध, तुलसी सत्संग साध कि, कटे करोड़ अपराध।


भरा सत्संग का दरिया, नहालो जिसका जी चाहे।।


द्वारका काशी जावोगे,


द्वारका काशी जावोगे, गया प्रयाग न्हावोगे, नहीं वहाँ मोक्ष पावोगे, फिर आना जिसका जी चाहे, भरा सत्संग का दरियाँ, नहालो जिसका जी चाहे ।।


तीर्थ कहूं ऐसा नहीं होवै, पुराण और ग्रंथों में गावे, अगर्च निश्चय नहिं होवे, बचाना जिसका जी चाहे, भरा सत्संग का दरियाँ, नहालो जिसका जी चाहे ।।


समागम सन्तों का होवे, पाप जन्मांत्र का खोवे, जिगर दिल दाग सब धोवे, धुपाना जिसका जी चाहे, भरा सत्संग का दरियाँ, नहालो जिसका जी चाहे ।।


भारती कल्याण यों गावे, सदा सत्संग मन भावे, सत्संग से मोक्ष पद पावे, कराना जिसका जी चाहे, भरा सत्संग का दरियाँ, नहालो जिसका जी चाहे ।।


भरा सत्संग का दरियाँ, नहालो जिसका जी चाहे ।।

Wednesday, July 17, 2024

झगड़ों से परिवार टूट जाते हैं। गलत शब्द के प्रयोग करने से मित्रता टूट जाती है।

कलहान्तानि हर्म्याणि कुवाक्यान्तं च सौहृदं,
कुराजान्तानि राष्ट्राणि कुकर्मान्तं यशो नृणां ॥

*भावार्थ:- झगड़ों से परिवार टूट जाते हैं। गलत शब्द के प्रयोग करने से मित्रता टूट जाती है। बुरे शासकों के कारण राष्ट्र का नाश होता है । बुरे काम करने से यश दूर भागता है।*

Thursday, June 20, 2024

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥

 सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे,

तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नम: ॥
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी,
हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥
हे नाथ नारायण...॥
पितु मात स्वामी, सखा हमारे,
हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥
हे नाथ नारायण...॥
॥ श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी...॥

बंदी गृह के, तुम अवतारी
कही जन्मे, कही पले मुरारी
किसी के जाये, किसी के कहाये
है अद्भुद, हर बात तिहारी ॥
है अद्भुद, हर बात तिहारी ॥
गोकुल में चमके, मथुरा के तारे
हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी,
हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥
पितु मात स्वामी, सखा हमारे,
हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥

अधर पे बंशी, ह्रदय में राधे
बट गए दोनों में, आधे आधे
हे राधा नागर, हे भक्त वत्सल
सदैव भक्तों के, काम साधे ॥
सदैव भक्तों के, काम साधे ॥
वही गए वही, गए वही गए
जहाँ गए पुकारे
हे नाथ नारायण वासुदेवा॥

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी,
हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥
पितु मात स्वामी सखा हमारे,
हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥

गीता में उपदेश सुनाया
धर्म युद्ध को धर्म बताया
कर्म तू कर मत रख फल की इच्छा
यह सन्देश तुम्ही से पाया
अमर है गीता के बोल सारे
हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥

श्री कृष्णा गोविन्द हरे मुरारी,
हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥
पितु मात स्वामी सखा हमारे,
हे नाथ नारायण वासुदेवा ॥

त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बंधू सखा त्वमेव
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देव देवा
॥ श्री कृष्णा गोविन्द हरे मुरारी...॥

राधे कृष्णा राधे कृष्णा
राधे राधे कृष्णा कृष्णा ॥
राधे कृष्णा राधे कृष्णा
राधे राधे कृष्णा कृष्णा ॥

हरी बोल, हरी बोल,
हरी बोल, हरी बोल ॥

राधे कृष्णा राधे कृष्णा
राधे राधे कृष्णा कृष्णा
राधे कृष्णा राधे कृष्णा
राधे राधे कृष्णा कृष्णा ॥

Sunday, June 2, 2024

भजन - अधुरं मधुरं वदनं मधुरं

अधुरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम् ।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥


वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरम।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥


वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुर: पाणिर्मधुर: पादौ मधुरौ ।
नृत्यं मधुरं संख्यं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥


गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम् ।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥


करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरम् ।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥


गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा ।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥


गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम् ।
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मधुराधिपतिरखिलं मधुरम् ॥


गोपा मधुरा गावो मथुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मथुरा ।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपतिरखिलं मधुरम् ॥