गजब की बाँसुरी बजती थी वृन्दावन बसैया की,
करूँ तारीफ़ मुरली कि या मुरलीधर कन्हैया की।
जहाँ चलता था न कुछ काम तीरों से कमानों से,
विजय नटवर की होती थी वहां बंसी की तानों से।
मुरलीवाले मुरलिया बजा दे जरा,
उससे गीता का ज्ञान सिखा दे जरा।
तेरी बंसी में भरा है वेद मन्त्रों का प्रचार।
फिर वही बंसी बजाकर कर दो भारत का सुधार।
तनपै हो काली कमलिया गले में गुंजों का हार।
इस मनोहर वेश में आ जा सांवलिया एक बार॥
ब्रज कि गलियों में गोरस लुटा दे जरा।
मुरली वाले मुरलिया बजा दे जरा॥
सत्यता के हों स्वर जिसमें और उल्फ़त की हो लय।
एकता की रागिनी हो वह जो करती है विजय॥
जिसके एक लहजे में तीनों लोक का दिल हिल उठे।
तेरे भक्तों को अब जरूरत उसी मुरली की है॥
ऐसी मुरली कि तान सुना दे जरा।
मुरलीवाले मुरलिया बजा दे जरा॥
कर्म यमुना ‘बिन्दु’ हो और धर्म का आकाश हो।
चाह की हो चाँदनी साहस का चंद्र विकास हो॥
फिर से वृदावन हो भारत, प्रेम का हास-विलास हो,
मिलकर सब आपस में नाचें, इस तरह का रास हो॥
फिर से जीवन कि ज्योति जगा दे जरा॥
akhileshwar
Tuesday, December 9, 2025
गज़ब की बांसुरी बजती थी, वृन्दावन बसैया कीतारीफ करूं मुरली की या, मुरलीधर कन्हैया की
गज़ब की बांसुरी बजती थी, वृन्दावन बसैया की
तारीफ करूं मुरली की या, मुरलीधर कन्हैया की
गज़ब की बांसुरी बजती थी, वृन्दावन बसैया की
तारीफ करूं मुरली की या, मुरलीधर कन्हैया की
मेरे घर आना साँवरिया, तुम्हे जाने न दूँगी
जाने ना दूँगी, तुम्हे जाने न दूँगी,
मेरे घर आना साँवरिया...........
मेरे घर आओगे तो, माखन खिलाऊँगी,
माखन खिलाऊँगी मैं, मिश्री खिलाऊँगी,
बजाने को ।॥, दूँगी बंसुरिया,तुम्हे जाने ना दूँगी,
मेरे घर आना साँवरिया..........
मेरे घर आओगे तो, दिल में बिठाऊँगी,
दिल में बिठाऊँगी मैं. नज़रों में बसाऊँगी,
बंद कर लूँगी ।॥, मैं नज़रिया, तुम्हे जाने ना दूँगी,
मेरे घर आना साँवरिया.........
मेरे घर आओगे तो, होली ख़िलाऊँगी,
होली खिलाऊँगी, गुलाल लगाऊँगी ,
रंग डालूँगी ।॥, मैं तो केसरिया, तुम्हे जाने ना दूँगी,
मेरे घर आना साँवरिया........
मेरे घर आओगे तो, सखियों को बुलाऊँगी ,
सखियों को बुलाऊँगी मैं, राधा को बुलाऊँगी,
फिर आ के ना ।॥, जाना साँवरिया, तुम्हे जाने ना दूँगी,
मेरे घर आना साँवरिया......
मेरे घर आओगे तो, अँगना सजाऊँगी,
अँगना सजाऊँगी मैं, हार भी पहनाऊँगी,
ओढ़न को ।॥, दूँगी कमरियाँ, तुम्हे जाने ना दूँगी,
मेरे घर आना साँवरिया........
Tuesday, November 18, 2025
उलझ मत दिल बहारों में
उलझ मत दिल बहारों में, बहारों का भरोसा क्या -२
सहारे टूट जाते हैं, सहारों का भरोसा क्या -२
तमन्नाएं जो तेरी हैं, फुहारें हैं ये सावन की -२
फुहारें सूख जाती हैं, फुहारों का भरोसा क्या -२
दिलासे जो जहां के हैं, सभी रंगीन बहारें हैं -२
बहारें रूठ जाती हैं, बहारों का भरोसा क्या -२
तूं इन फूले गुब्बारों पर, अरे दिल क्यों फ़िदा होता -२
गुब्बारे फूट जाते हैं, गुब्बारों का भरोसा क्या -२
तूं सम्बल नाम का लेकर, किनारों से किनारा कर -२
किनारे टूट जाते हैं, किनारों का भरोसा क्या -२
तूं अपनी अक्लमंदी पर, विचारों पर ना इतराना -२
जो लहरों की तरह चंचल, विचारों का भरोसा क्या -२
परम प्रभु की शरण लेकर, विकारों से सजग रहना -२
कहाँ कब मन बिगड़ जाए, विकारों का भरोसा क्या -२
Wednesday, September 10, 2025
जो खानदानी रईस हैं वो मिजाज रखते हैं नर्म अपना / शबीना अदीब
ख़ामोश लब हैं झुकी हैं पलकें, दिलों में उल्फ़त नई-नई है,
अभी तक़ल्लुफ़ है गुफ़्तगू में, अभी मोहब्बत नई-नई है।अभी न आएँगी नींद तुमको, अभी न हमको सुकूँ मिलेगा
अभी तो धड़केगा दिल ज़ियादा, अभी मुहब्बत नई नई है।
बहार का आज पहला दिन है, चलो चमन में टहल के आएँ
फ़ज़ा में ख़ुशबू नई नई है गुलों में रंगत नई नई है।
जो खानदानी रईस हैं वो मिज़ाज रखते हैं नर्म अपना,
तुम्हारा लहजा बता रहा है, तुम्हारी दौलत नई-नई है।
ज़रा सा क़ुदरत ने क्या नवाज़ा के आके बैठे हो पहली सफ़ में
अभी क्यों उड़ने लगे हवा में अभी तो शोहरत नई नई है।
बमों की बरसात हो रही है, पुराने जांबाज़ सो रहे हैं
ग़ुलाम दुनिया को कर रहा है वो जिसकी ताक़त नई नई है।
Friday, July 4, 2025
हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की,ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की….
हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की,
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की….
(दोहा – ॐ श्री महागणाधिपतये नमः,
ॐ श्री उमामहेश्वराभ्याय नमः,
वाल्मीकि गुरुदेव के,
पद पंकज सिर नाय,
सुमिरे मात सरस्वती,
हम पर होऊ सहाय,
मात पिता की वंदना,
करते बारम्बार,
गुरुजन राजा प्रजाजन,
नमन करो स्वीकार)
हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की,
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की….
जम्बुद्वीपे, भरत खंडे, आर्यावरते भारतवर्षे,
एक नगरी है विख्यात अयोध्या नाम की,
यही जन्म भूमि है परम पूज्य श्री राम की,
हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की,
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की….
रघुकुल के राजा धर्मात्मा,
चक्रवर्ती दशरथ पुण्यात्मा,
संतति हेतु यज्ञ करवाया,
धर्म यज्ञ का शुभफल पाया,
नृप घर जन्मे चार कुमारा,
रघुकुल दीप जगत आधारा,
चारों भ्रातो के शुभ नामा,
भरत, शत्रुघ्न, लक्ष्मण, रामा….
गुरु वशिष्ठ के गुरुकुल जाके,
अल्प काल विद्या सब पाके,
पूरण हुई शिक्षा, रघुवर पूरण काम की,
हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की,
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की….
मृदु स्वर कोमल भावना,
रोचक प्रस्तुति ढंग,
एक एक कर वर्णन करे,
लव कुश राम प्रसंग,
विश्वामित्र महामुनि राई,
इनके संग चले दोउ भाई,
कैसे राम ताड़का मारी,
कैसे नाथ अहिल्या तारी…
मुनिवर विश्वामित्र तब,
संग ले लक्ष्मण राम,
सिया स्वयंवर देखने,
पहुचे मिथिला धाम…
जनकपुर उत्सव है भारी,
जनकपुर उत्सव है भारी,
अपने वर का चयन करेगी,
सीता सुकुमारी,
जनकपुर उत्सव है भारी…
जनकराज का कठिन प्रण,
सुनो सुनो सब कोई,
जो तोड़े शिव धनुष को,
सो सीता पति होई…
को तोडे शिव धनुष कठोर,
सब की दृष्टि राम की ओर,
राम विनयगुण के अवतार,
गुरुवर की आज्ञा सिरधार…
सहज भाव से शिव धनु तोड़ा,
जनक सुता संग नाता जोड़ा…
रघुवर जैसा और ना कोई,
सीता की समता नहीं होई,
जो करे पराजित कान्ति कोटी रति काम की,
हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की,
ये रामायण है पुण्य कथा सिया राम की….
सब पर शब्द मोहिनी डारी,
मंत्रमुग्ध भए सब नर-नारी,
यों दिन रैन जात है बीते,
लव कुश ने सब के मन जीते,
वन गमन, सीता हरन, हनुमंत मिलन,
लंका दहन, रावण मरण, अयोध्या पुनरागमन…
सविस्तार सब कथा सुनाई,
राजा राम भए रघुराई,
राम राज आयो सुख दायी,
सुख समृद्धि श्री घर घर आई…
काल चक्र ने घटना क्रम में,
ऐसा चक्र चलाया,
राम सिया के जीवन में फिर,
घोर अंधेरा छाया….
अवध में ऐसा, ऐसा इक दिन आया,
निष्कलंक सीता पे प्रजा ने,
मिथ्या दोष लगाया,
अवध में ऐसा, ऐसा इक दिन आया….
चल दी सिया जब तोड़ कर,
सब नेह-नाते मोह के,
पाषाण हृदयो में ना,
अंगारे जगे विद्रोह के…
ममतामयी माँओ के आँचल,
भी सिमट कर रह गए,
गुरुदेव ज्ञान और नीति के,
सागर भी घट कर रह गए…
ना रघुकुल ना रघुकुल नायक,
कोई ना सिया का हुआ सहायक,
मानवता को खो बैठे जब,
सभ्य नगर के वासी,
तब सीता को हुआ सहायक,
वन का ऐक सन्यासी….
उन ऋषि परम उदार का,
वाल्मीकि शुभ नाम,
सीता को आश्रय दिया,
ले आए निज धाम….
रघुकुल में कुलदीप जलाए,
राम के दो सूत सिय ने जाए…
(श्रोता गण, जो एक राजा की पुत्री है,
एक राजा की पुत्रवधू हैं,
और एक चक्रवर्ती राजा की पत्नी है,
वही महारानी सीता,
वनवास के दुखो में,
अपने दिन कैसे काटती हैं,
अपने कुल के गौरव और,
स्वाभिमान की रक्षा करते हुए,
किसी से सहायता मांगे बिना,
कैसे अपने काम वो स्वयं करती है,
स्वयं वन से लकड़ी काटती है,
स्वयं अपना धान कूटती है,
स्वयं अपनी चक्की पीसती हैं,
और अपनी संतान को,
स्वावलंबी बनने की शिक्षा कैसे देती है,
अब उसकी करुण झांकी देखिये)
जनक दुलारी कुलवधु दशरथ जी की,
राज-रानी होके दिन वन में बिताती हैं…
रहते थे घेरे जिसे दास-दासी आठो याम,
दासी बनी अपनी उदासी को छुपाती है…
धरम प्रवीन सती परम कुलिन सब,
विधि दोशहीन जीना दुख में सिखाती हैं,
जगमाता हरी-प्रिय लक्ष्मी स्वरूपा सिया,
कूटती है धान भोज स्वयं बनाती है…
कठिन कुल्हाड़ी लेके लकड़िया काटती है,
करम लिखे को पर काट नहीं पाती है…
फूल भी उठाना भारी जिस सुकुमारी को था,
दुख भरे जीवन का बोज वो उठाती है…
अर्धागिनी रघुवीर की वो धरधीर,
भर्ती है नीर, नीर नैन में ना लाती है,
जिसकी प्रजा के अपवादों कुचक्र में वो,
पीसती है चक्की स्वाभिमान बचाती है,
पालती है बच्चो कों वो कर्म योगिनी की भांति,
स्वाभिमानी स्वावलंबी सफल बनाती हैं,
ऐसी सीता माता की परीक्षा लेते दुख देते,
निठुर नियति को दया भी नहीं आती है….
ओ…उस दुखिया के राज-दुलारे,
हम ही सूत श्री राम तिहारे…
ओ… सीता माँ की आँख के तारे,
लव-कुश है पितु नाम हमारे…
हे पितु भाग्य हमारे जागे,
राम कथा कही राम के आगे ||
Thursday, July 3, 2025
नियम से कोई तरे ना पत्थर जीना नीचे जाय।
नियम से कोई तरे ना पत्थर जीना नीचे जाय।
कुदरत के कानून में राम ना आड़े आय।।
भगवान बीच में नही आता तुम्हारे कर्म के अनुसार तुम तैरोगे या डूबोगे ये सीधा हिसाब है दुनियां में इस धरती को क्या बीज से नाता
धरती को क्या बीज से नाता जैसा बीज जो बोया जाता।
उसी स्वभाव गुण धर्म को लेकर कड़वा मीठा फल बन जाता।।
कुदरत का कानून है धरती कर्म तुम्हारे बीच।
एक बीज फल हजारों हजार के लाखों बीज।।
कहे नंदनी नही कोई जगत में नरक स्वर्ग को देने वाला।
नर्क स्वर्ग हम स्वयं रचते पल पल जैसा बीज हो डाला।।
आहार व्यवाहर विचार से हर पल बीज जो बोये।
पल पल फल बनता गया अचानक कुछ ना होई।।
कहे नंदनी जागे रहो सचेत रहो हर पल।
इस पल बोया बीज ही फल लायेगा कल।।
बहोत ही सुन्दर आयना है
जय श्री राम
Monday, March 10, 2025
मन के जीते जीत है मन के हारे हार
मन के जीते जीत है मन के हारे हार
हार गए जो बिन लड़े उनपर है धिक्कार
उनपर है धिक्कार जो देखे न सपना
सपनों का अधिकार असलअधिकार है अपना
अपनों के खातिर करना कुछ आज हमें
अजर अमर कर देना है स्वराज हमें
तु मटी का लाल है कोई कंकड़ या धूल नहीं
तु समय बदल के रख देगा इतिहास लिखेगा भूल नहीं
तु भोर का पहिला तारा है परिवर्तन का एक नारा है
ये अंधकार कुछ पल का है फिर सब कुछ तुम्हारा है
सेवक का अख़री मुजरा स्वीकार कीजिए राजे
जा रहे हैं आपके शत्रुओं के चोट पर लगाने
हमने कहा था हम नमक है महाराज
तुम नमक नहीं चंदन हो कवि तुम तिलक हमारे माते का
कविता ही खत्म हुई राजे अंत में जीत आपकी हुई
जनमन्स के भूप रहोगे चरम चमकती धूप रहोगे
प्रसन्न रहे माता जगदंबा ओ छत्रपति
ओ साहचरी ओ संभा
हम नमक है महाराज, हम नमक है
तुम नमक नहीं चंदन हो कवि तुम तिलक हमारे माते का
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