मन के जीते जीत है मन के हारे हार
हार गए जो बिन लड़े उनपर है धिक्कार
उनपर है धिक्कार जो देखे न सपना
सपनों का अधिकार असलअधिकार है अपना
अपनों के खातिर करना कुछ आज हमें
अजर अमर कर देना है स्वराज हमें
तु मटी का लाल है कोई कंकड़ या धूल नहीं
तु समय बदल के रख देगा इतिहास लिखेगा भूल नहीं
तु भोर का पहिला तारा है परिवर्तन का एक नारा है
ये अंधकार कुछ पल का है फिर सब कुछ तुम्हारा है
सेवक का अख़री मुजरा स्वीकार कीजिए राजे
जा रहे हैं आपके शत्रुओं के चोट पर लगाने
हमने कहा था हम नमक है महाराज
तुम नमक नहीं चंदन हो कवि तुम तिलक हमारे माते का
कविता ही खत्म हुई राजे अंत में जीत आपकी हुई
जनमन्स के भूप रहोगे चरम चमकती धूप रहोगे
प्रसन्न रहे माता जगदंबा ओ छत्रपति
ओ साहचरी ओ संभा
हम नमक है महाराज, हम नमक है
तुम नमक नहीं चंदन हो कवि तुम तिलक हमारे माते का
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