Saturday, April 6, 2024

सदा न फूलै केतकी, सदा न सावन होए।

सदा न फूलै केतकी, सदा न सावन होए। सदा न विपदा रह सके, सदा न सुख भी होए। सदा न मौज बसन्त री, सदा न ग्रीष्म भाण। सदा न जोवन थिर रहे, सदा न संपत माण। सदा न काहू की रही, गल प्रीतम की बांह। ढ़लते ढ़लते ढ़ल गई, तरवर की सी छाँह।

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