मैं और मोर तोर ,तह माया ,
जेहि बस कीन्हें ,जीव निकाया।
ये मैं हूँ। ये मेरा है। ये तू है ये तेरा है ,बस ये ही माया है जिसने पूरे जीव संसार को अपने वश में कर रखा है। ममत्व और अहंकार उस मार्ग की बाधाएं हैं जो भगवान की ओर जाता हैऔर उस परम तत्व परब्रह्म (स्वयं अपने सच्चिदानंद स्वरूप का )बोध कराता है। ।
माया से ही पैदा होता है अहंकार और ममत्व। ममत्व यानी मन का ,मेरा ,ये मेरा
है का भाव ,माया की ही संतान है।
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