Friday, July 4, 2025

हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की,ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की….

हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की,
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की….

(दोहा – ॐ श्री महागणाधिपतये नमः,
ॐ श्री उमामहेश्वराभ्याय नमः,
वाल्मीकि गुरुदेव के,
पद पंकज सिर नाय,
सुमिरे मात सरस्वती,
हम पर होऊ सहाय,
मात पिता की वंदना,
करते बारम्बार,
गुरुजन राजा प्रजाजन,
नमन करो स्वीकार)

हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की,
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की….

जम्बुद्वीपे, भरत खंडे, आर्यावरते भारतवर्षे,
एक नगरी है विख्यात अयोध्या नाम की,
यही जन्म भूमि है परम पूज्य श्री राम की,
हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की,
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की….

रघुकुल के राजा धर्मात्मा,
चक्रवर्ती दशरथ पुण्यात्मा,
संतति हेतु यज्ञ करवाया,
धर्म यज्ञ का शुभफल पाया,
नृप घर जन्मे चार कुमारा,
रघुकुल दीप जगत आधारा,
चारों भ्रातो के शुभ नामा,
भरत, शत्रुघ्न, लक्ष्मण, रामा….

गुरु वशिष्ठ के गुरुकुल जाके,
अल्प काल विद्या सब पाके,
पूरण हुई शिक्षा, रघुवर पूरण काम की,
हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की,
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की….

मृदु स्वर कोमल भावना,
रोचक प्रस्तुति ढंग,
एक एक कर वर्णन करे,
लव कुश राम प्रसंग,
विश्वामित्र महामुनि राई,
इनके संग चले दोउ भाई,
कैसे राम ताड़का मारी,
कैसे नाथ अहिल्या तारी…

मुनिवर विश्वामित्र तब,
संग ले लक्ष्मण राम,
सिया स्वयंवर देखने,
पहुचे मिथिला धाम…

जनकपुर उत्सव है भारी,
जनकपुर उत्सव है भारी,
अपने वर का चयन करेगी,
सीता सुकुमारी,
जनकपुर उत्सव है भारी…

जनकराज का कठिन प्रण,
सुनो सुनो सब कोई,
जो तोड़े शिव धनुष को,
सो सीता पति होई…

को तोडे शिव धनुष कठोर,
सब की दृष्टि राम की ओर,
राम विनयगुण के अवतार,
गुरुवर की आज्ञा सिरधार…

सहज भाव से शिव धनु तोड़ा,
जनक सुता संग नाता जोड़ा…

रघुवर जैसा और ना कोई,
सीता की समता नहीं होई,
जो करे पराजित कान्ति कोटी रति काम की,
हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की,
ये रामायण है पुण्य कथा सिया राम की….

सब पर शब्द मोहिनी डारी,
मंत्रमुग्ध भए सब नर-नारी,
यों दिन रैन जात है बीते,
लव कुश ने सब के मन जीते,
वन गमन, सीता हरन, हनुमंत मिलन,
लंका दहन, रावण मरण, अयोध्या पुनरागमन…

सविस्तार सब कथा सुनाई,
राजा राम भए रघुराई,

राम राज आयो सुख दायी,
सुख समृद्धि श्री घर घर आई…

काल चक्र ने घटना क्रम में,
ऐसा चक्र चलाया,
राम सिया के जीवन में फिर,
घोर अंधेरा छाया….

अवध में ऐसा, ऐसा इक दिन आया,
निष्कलंक सीता पे प्रजा ने,
मिथ्या दोष लगाया,
अवध में ऐसा, ऐसा इक दिन आया….

चल दी सिया जब तोड़ कर,
सब नेह-नाते मोह के,
पाषाण हृदयो में ना,
अंगारे जगे विद्रोह के…

ममतामयी माँओ के आँचल,
भी सिमट कर रह गए,
गुरुदेव ज्ञान और नीति के,
सागर भी घट कर रह गए…

ना रघुकुल ना रघुकुल नायक,
कोई ना सिया का हुआ सहायक,
मानवता को खो बैठे जब,
सभ्य नगर के वासी,
तब सीता को हुआ सहायक,
वन का ऐक सन्यासी….

उन ऋषि परम उदार का,
वाल्मीकि शुभ नाम,
सीता को आश्रय दिया,
ले आए निज धाम….

रघुकुल में कुलदीप जलाए,
राम के दो सूत सिय ने जाए…

(श्रोता गण, जो एक राजा की पुत्री है,
एक राजा की पुत्रवधू हैं,
और एक चक्रवर्ती राजा की पत्नी है,
वही महारानी सीता,
वनवास के दुखो में,
अपने दिन कैसे काटती हैं,
अपने कुल के गौरव और,
स्वाभिमान की रक्षा करते हुए,
किसी से सहायता मांगे बिना,
कैसे अपने काम वो स्वयं करती है,
स्वयं वन से लकड़ी काटती है,
स्वयं अपना धान कूटती है,
स्वयं अपनी चक्की पीसती हैं,
और अपनी संतान को,
स्वावलंबी बनने की शिक्षा कैसे देती है,
अब उसकी करुण झांकी देखिये)

जनक दुलारी कुलवधु दशरथ जी की,
राज-रानी होके दिन वन में बिताती हैं…
रहते थे घेरे जिसे दास-दासी आठो याम,
दासी बनी अपनी उदासी को छुपाती है…

धरम प्रवीन सती परम कुलिन सब,
विधि दोशहीन जीना दुख में सिखाती हैं,
जगमाता हरी-प्रिय लक्ष्मी स्वरूपा सिया,
कूटती है धान भोज स्वयं बनाती है…
कठिन कुल्हाड़ी लेके लकड़िया काटती है,
करम लिखे को पर काट नहीं पाती है…
फूल भी उठाना भारी जिस सुकुमारी को था,
दुख भरे जीवन का बोज वो उठाती है…
अर्धागिनी रघुवीर की वो धरधीर,
भर्ती है नीर, नीर नैन में ना लाती है,
जिसकी प्रजा के अपवादों कुचक्र में वो,
पीसती है चक्की स्वाभिमान बचाती है,
पालती है बच्चो कों वो कर्म योगिनी की भांति,
स्वाभिमानी स्वावलंबी सफल बनाती हैं,
ऐसी सीता माता की परीक्षा लेते दुख देते,
निठुर नियति को दया भी नहीं आती है….

ओ…उस दुखिया के राज-दुलारे,
हम ही सूत श्री राम तिहारे…

ओ… सीता माँ की आँख के तारे,
लव-कुश है पितु नाम हमारे…

हे पितु भाग्य हमारे जागे,
राम कथा कही राम के आगे ||

Thursday, July 3, 2025

नियम से कोई तरे ना पत्थर जीना नीचे जाय।

नियम से कोई तरे ना पत्थर जीना नीचे जाय।
कुदरत के कानून में राम ना आड़े आय।।

भगवान बीच में नही आता तुम्हारे कर्म के अनुसार तुम तैरोगे या डूबोगे ये सीधा हिसाब है दुनियां में इस धरती को क्या बीज से नाता 
धरती को क्या बीज से नाता जैसा बीज जो बोया जाता। 
उसी स्वभाव गुण धर्म को लेकर कड़वा मीठा फल बन जाता।।
कुदरत का कानून है धरती कर्म तुम्हारे बीच। 
एक बीज फल हजारों हजार के लाखों बीज।। 
कहे नंदनी नही कोई जगत में नरक स्वर्ग को देने वाला।
 नर्क स्वर्ग हम स्वयं रचते पल पल जैसा बीज हो डाला।।
आहार व्यवाहर विचार से हर पल बीज जो बोये। 
पल पल फल बनता गया अचानक कुछ ना होई।।
कहे नंदनी जागे रहो सचेत रहो हर पल। 
इस पल बोया बीज ही फल लायेगा कल।।
बहोत ही सुन्दर आयना है
जय श्री राम

Monday, March 10, 2025

मन के जीते जीत है मन के हारे हार

मन के जीते जीत है मन के हारे हार
हार गए जो बिन लड़े उनपर है धिक्कार
उनपर है धिक्कार जो देखे न सपना
सपनों का अधिकार असलअधिकार है अपना
अपनों के खातिर करना कुछ आज हमें
अजर अमर कर देना है स्वराज हमें
तु मटी का लाल है कोई कंकड़ या धूल नहीं
तु समय बदल के रख देगा इतिहास लिखेगा भूल नहीं
तु भोर का पहिला तारा है परिवर्तन का एक नारा है
ये अंधकार कुछ पल का है फिर सब कुछ तुम्हारा है
सेवक का अख़री मुजरा स्वीकार कीजिए राजे
जा रहे हैं आपके शत्रुओं के चोट पर लगाने
हमने कहा था हम नमक है महाराज
तुम नमक नहीं चंदन हो कवि तुम तिलक हमारे माते का
कविता ही खत्म हुई राजे अंत में जीत आपकी हुई
जनमन्स के भूप रहोगे चरम चमकती धूप रहोगे
प्रसन्न रहे माता जगदंबा ओ छत्रपति
ओ साहचरी ओ संभा
हम नमक है महाराज, हम नमक है
तुम नमक नहीं चंदन हो कवि तुम तिलक हमारे माते का

Friday, January 24, 2025

चैते चना , बैशाखे बेल ;जेठे शयन , आसाढे खेल ।

चैते चना , बैशाखे बेल ;
जेठे शयन , आसाढे खेल ।

सावन हरे , भादौ तीत ;
क्वार में करो , गुङ से प्रीत ।

कार्तिक मूली , अगहन तेल ;
पूष में करो , दुध से मेल ।

माघ मास घी खिचङी खाय ;
फागुन उठकर नित्य नहाय। 

यह बारह जो सेवन करे ;
रोग दोष दुख तन कर हरे ।।

    चैत्र के महीने में चने का सेवन जरूर करना चाहिए। नया चना प्रकृति नव परिवर्तन के साथ पथ्य बन जाता है । जो फाल्गुन में अपनी नमी के चलते वात प्रधान था। वह चैत्र में औषध जैसा बन जाता है।
 
   वैशाख के महीने में बेल फल का सेवन जरूर करना चाहिए।  पूरे वैशाख मास के अंदर फलों में हमेशा बेल फल  को भोजन का हिस्सा जरूर बनायें ।

    ज्येष्ठ के महीने में जब दिन में बाहर भयंकर गर्मी पड़ती है तो दिन के समय शयन कर, जरूर आराम करना चाहिए। वैसे आयुर्वेद में दिन में सोना वर्जित होता है, लेकिन सिर्फ ज्येष्ठ के महीने में ही सोने को अनुकूल माना गया है। 
   आषाढ़ के महीने में खेल यानि विभिन्न प्रकार के खेल , योग , कसरत , एक्सरसाइज करनी चाहिए। आषाढ के महीने का मौसम अनुकूल होता है और शरीर को भी आने वाले मौसम के लिए तैयार रखना जरूरी हैं।

   सावन के महीने में छोटी हरङ का एक डंठल हर रोज एक दिन में एक बार मुंह में सुपारी की भांति रखकर के जरूर खाना चाहिए। हरङ त्रिफलों में एक महत्वपूर्ण औषधि है।

   भाद्रपद महीने में तीत यानी किरायचा जरूर खाएं। किरायचा छोटे छोटे कवक जीवाणु आदि को शरीर से बाहर निकालता हैं, जो नुकसानदायक होते हैं।

   आसोज के महीने में गुड़ जरूर खाना चाहिए । रात को सोते समय एक गुड़ की छोटी सी डली खाकर के कुल्ला करके सो जाएं। पूरा शरीर डिटॉक्स हो जाएगा।

   कार्तिक के महीने में मूली जरूर खाएं । कार्तिक मास की सुबह में अगर आपने मूली खाई तो वह औषध के समान शरीर को गुण देती है।
 
   मिक्सर महीने में तेल का सेवन जरूर करें , क्योंकि बाहर के सर्द मौसम से चमड़ी शुष्क हो जाती है। और हमारी चमड़ी को भी वसा की जरूरत होती है । मिक्सर में तेल खाना भी चाहिए और तेल से शरीर पर मसाज भी करना चाहिए। 

   पौष के महीने में दूध का सेवन जरूर करें । रात को सोते समय गाय  का दूध अच्छी तरह से गर्म करने के पश्चात सोते समय पीकर सोयें। 

    माघ के महीने में घी और खीचड़ी का भोजन जरूर करें। इस महीने में भगवान को भी खींचङे का ही भोग इसीलिए लगाते है।

   फाल्गुन के महीने में सुबह जल्दी उठकर जरूर अच्छी तरह से नहाना चाहिए , क्योंकि बाहर का मौसम इस महीने में उल्टा सीधा चलता रहता है। सुबह-सुबह सूर्योदय के साथ स्नान करके अपने शरीर के तापमान को संतुलित करना परम आवश्यक है।
   हमारे पूर्वजों के द्वारा बताई गई ये समस्त बातें उनके वर्षों का अनुभव हैं। इसलिए ये सिर्फ किंवदंतियां नहीं सांईटीफिक भी पूर्ण निरापद बातें हैं।  

   ऐसा हर पदार्थ मौसम व समय के अनुसार आप खाया जाए तो ओषध जैसा होता हैं तो असमय सेवन से विष समान बन जाता हैं।
साभार

Saturday, January 18, 2025

अक्ल बाँटने लगे विधाता,लम्बी लगी कतारी ।

अक्ल बाँटने लगे विधाता,
लम्बी लगी कतारी ।
सभी आदमी खड़े हुए थे,
कहीं नहीं थी नारी ।।

सभी नारियाँ कहाँ रह गयीं,
था ये अचरज भारी ।
पता चला ब्यूटी पार्लर में,
पहुँच गयीं थीं सारी ।।

मेकअप की थी गहन प्रक्रिया,
एक एक पर भारी ।
बैठी थीं कुछ इन्तजार में,
कब आयेगी बारी ।।

उधर विधाता ने पुरूषों में,
अक्ल बाँट दी सारी ।
पार्लर से फुर्सत पा कर के,
जब पहुँची सब नारी ।।

बोर्ड लगा था स्टॉक ख़त्म है,
नहीं अक्ल अब बाकी ।
रोने लगी सभी महिलाएँ,
नीन्द खुली ब्रह्मा की ।।

पूछा कैसा शोर हो रहा,
ब्रह्मलोक के द्वारे ?
पता चला कि स्टॉक अक्ल का
पुरुष ले गये सारे ।।

ब्रह्मा जी ने कहा देवियों,
बहुत देर कर दी है ।
जितनी भी थी अक्ल सभी वो,
पुरुषों में भर दी है ।।

लगी चीखने महिलाएँ,
ये कैसा न्याय तुम्हारा ?
कुछ भी करो, चाहिए हमको
आधा भाग हमारा ।।

पुरुषों में शारीरिक बल है,
हम ठहरी अबलाएँ ।
अक्ल हमारे लिए जरुरी,
निज रक्षा कर पाएँ ।।

बहुत सोच दाढ़ी सहला कर,
तब बोले ब्रह्मा जी ।
इक वरदान तुम्हे देता हूँ,
हो जाओ अब राजी ।।

थोड़ी सी भी हँसी तुम्हारी,
रहे पुरुष पर भारी ।
कितना भी वह अक्लमन्द हो,
अक्ल जायेगी मारी ।।

एक बोली, क्या नहीं जानते !
स्त्री कैसी होती है ?
हँसने से ज्यादा महिलाएँ,
बिना बात रोती हैं ।।

ब्रह्मा बोले यही कार्य तब,
रोना भी कर देगा ।
औरत का रोना भी नर की,
बुद्धि को हर लेगा ।।

इक बोली, हमको ना रोना,
ना हँसना आता है ।
झगड़े में हैं सिद्धहस्त हम,
झगड़ा ही भाता है ।।

ब्रह्मा बोले चलो मान ली,
यह भी बात तुम्हारी ।
घर में जब भी झगड़ा होगा,
होगी विजय तुम्हारी ।।

जग में अपनी पत्नी से जब
कोई पति लड़ेगा ।
पछतायेगा, सिर ठोकेगा
आखिर वही झुकेगा ।।

ब्रह्मा बोले सुनो ध्यान से,
अन्तिम वचन हमारा ।
तीन शस्त्र अब तुम्हें दे दिये,
पूरा न्याय हमारा ।।

इन अचूक शस्त्रों में भी,
जो मानव नहीं फँसेगा ।
बड़ा विलक्षण जगतजयी
ऐसा नर दुर्लभ होगा ।।

कहे कवि सब बड़े ध्यान से,
सुन लो बात हमारी ।
बिना अक्ल के भी होती है,
नर पर भारी नारी ।।

Saturday, November 9, 2024

भरा सत्संग का दरिया, नहालो जिसका जी चाहे ।।

 भरा सत्संग का दरिया, नहालो जिसका जी चाहे ।।


दोहा – एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनिआध, तुलसी सत्संग साध कि, कटे करोड़ अपराध।


भरा सत्संग का दरिया, नहालो जिसका जी चाहे।।


द्वारका काशी जावोगे,


द्वारका काशी जावोगे, गया प्रयाग न्हावोगे, नहीं वहाँ मोक्ष पावोगे, फिर आना जिसका जी चाहे, भरा सत्संग का दरियाँ, नहालो जिसका जी चाहे ।।


तीर्थ कहूं ऐसा नहीं होवै, पुराण और ग्रंथों में गावे, अगर्च निश्चय नहिं होवे, बचाना जिसका जी चाहे, भरा सत्संग का दरियाँ, नहालो जिसका जी चाहे ।।


समागम सन्तों का होवे, पाप जन्मांत्र का खोवे, जिगर दिल दाग सब धोवे, धुपाना जिसका जी चाहे, भरा सत्संग का दरियाँ, नहालो जिसका जी चाहे ।।


भारती कल्याण यों गावे, सदा सत्संग मन भावे, सत्संग से मोक्ष पद पावे, कराना जिसका जी चाहे, भरा सत्संग का दरियाँ, नहालो जिसका जी चाहे ।।


भरा सत्संग का दरियाँ, नहालो जिसका जी चाहे ।।

Wednesday, July 17, 2024

झगड़ों से परिवार टूट जाते हैं। गलत शब्द के प्रयोग करने से मित्रता टूट जाती है।

कलहान्तानि हर्म्याणि कुवाक्यान्तं च सौहृदं,
कुराजान्तानि राष्ट्राणि कुकर्मान्तं यशो नृणां ॥

*भावार्थ:- झगड़ों से परिवार टूट जाते हैं। गलत शब्द के प्रयोग करने से मित्रता टूट जाती है। बुरे शासकों के कारण राष्ट्र का नाश होता है । बुरे काम करने से यश दूर भागता है।*